मृतक आश्रित कोटे में सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति अवैध, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्वतः प्रेरित सुनवाई कर दो शासनादेशों को किया रद
कहा-सहायक अध्यापक के अतिरिक्त अन्य किसी पद पर नियुक्ति दें
सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़ी होती है अध्यापक पद पर नियुक्ति
आश्रित कोटे का उद्देश्य सिर्फ आर्थिक विपदा से परिवार को राहत देना
लोक पद खुली प्रतियोगिता से से भरे जाने चाहिए। लोक पदों पर नियुक्ति में सभी को समान अवसर देने का संवैधानिक उपबंध है। ऐसे पदों को आश्रित कोटे से भरना कानून का दुरुपयोग करना है। यह बैंक डोर इंट्री है और नियुक्ति में समानता के विरुद्ध है।' न्यायमूर्ति अजय भनोट, इलाहाबाद हाई कोर्ट
प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में मृतक आश्रित सेवा नियमावली के अंतर्गत आश्रित को सहायक अध्यापक पद पर नियुक्त किए जाने को अनुच्छेद 14,16, व 21 ए के विरूद्ध होने के कारण असंवैधानिक करार दिया है। साथ ही मृतक आश्रित को सहायक अध्यापक नियुक्त करने की अनुमति देने वाले चार सितंबर 2000 व 15 फरवरी 2013 के शासनादेशों को रद करते हुए सरकार को इन पर अमल न करने का निर्देश दिया है। याचिका में शासनादेशों की वैधता को चुनौती नहीं दी गई थी इसलिए कोर्ट ने स्वतः प्रेरित सुनवाई की। यह फैसला न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकल पीठ ने दिया है।
कोर्ट ने शैलेन्द्र कुमार व पांच अन्य की समान याचिकाओं पर सरकार को तीन महीने में निर्णय लेने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा, सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति सामाजिक प्रतिष्ठा का विषय है, जबकि आश्रित कोटे में नियुक्ति परिवार में अचानक आई आर्थिक विपदा से राहत देना है। याचीगण ने आश्रित कोटे में सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति की मांग की थी। कोर्ट ने इस मांग व शासनादेश को अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 की धारा 3 व मृतक आश्रित सेवा नियमावली 1999 के नियम 5के विरुद्ध करार दिया।
कोर्ट के समक्ष विचारणीय मुद्दा यह था कि क्या याची को शासनादेशों के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति के अंतर्गत शिक्षक के रूप में नियुक्त करने के लिए परमादेश की मांग संविधान सम्मत है? साथ ही क्या शासनादेश संविधान के अनुच्छेद 14, 16 तथा अनुच्छेद 21 ए के तहत शिक्षा के मौलिक अधिकार और बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 द्वारा प्रदत्त अधिकारों के अनुरूप है?
कोर्ट ने कहा, 'वास्तव में योग्यता निर्धारित करने की प्रक्रिया का प्रारंभिक बिंदु योग्यता है। संवैधानिक प्रक्रिया शिक्षकों के रूप में नियुक्ति के लिए सभी योग्य उम्मीदवारों में सबसे अधिक योग्य का चयन करने के लिए सबसे विश्वसनीय तरीका है। यदि अनुच्छेद 21 ए के तहत बच्चों के मौलिक अधिकार को साकार करना है तो दोषपूर्ण नियुक्ति प्रक्रियाओं के कारण शिक्षकों की गुणवत्ता में गिरावट बर्दाश्त नहीं की जा सकती। जो पद डाइंग इन हार्नेस रूल्स, 1999 के नियम 5 के अंतर्गत अनुकंपा नियुक्ति के लिए मान्य नहीं हैं, उन्हें अनुच्छेद 14 और 16 के अंतर्गत सार्वजनिक प्रक्रिया से ही भरा जा सकता है। कोर्ट ने आदेश की प्रति प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा को भेजने का आदेश दिया।
कहा- भर्ती की संवैधानिक प्रक्रिया ही सर्वाधिक योग्य का चयन करने का विश्वनीय तरीका
सर्वश्रेष्ठ का चयन संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 के अनुसार सार्वजनिक भर्ती से ही संभव
" बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अधिकार तभी सुनिश्चित हो सकता है जब सर्वाधिक योग्य उम्मीदवारों की नियुक्ति हो। सिर्फ पात्रता के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति से ये अधिकार कमजोर होता है।" हाईकोर्ट की टिप्पणी
ये थे कोर्ट के समक्ष विचारणीय मुद्दे
🔴 हाईकोर्ट के समक्ष विचारणीय मुद्दा था कि याचियों को शासनादेशों के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति शिक्षक के रूप में नियुक्त करने के लिए परमादेश की मांग संविधान और कानून को लागू करेगी या उसके विपरीत होगी।
🔴 शासनादेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और अनुच्छेद 21 ए के तहत बच्चों को दिए गए शिक्षा के मौलिक अधिकार और बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 प्रदत्त अधिकारों के अनुरूप हैं या नहीं।
🔴 सरकारी आदेश उत्तर प्रदेश सेवाकाल में मृत सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती (पांचवां संशोधन) नियमावली 1999 के नियम पांच के अनुरूप है या नहीं।
न्यूनतम शैक्षणिक अर्हता के आधार पर मांगी थी नियुक्ति
याचिकाएं शैलेंद्र कुमार, शितेश कुमारी, अनुपम, दीप माला कुशवाह और अनिरुद्ध यादव सहित मृत सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों ने दायर की थीं। उन्होंने 04 सितंबर 2000 और 15 फरवरी 2013 के शासनादेशों के तहत बेसिक शिक्षा परिषद में सहायक अध्यापक पद पर अनुकंपा नियुक्ति की मांग की थी। इन शासनादेशों में सिर्फ न्यूनतम शैक्षणिक अर्हता के आधार पर नियुक्ति का प्रावधान था जिसमें मेरिट आधारित चयन की आवश्यकता नहीं थी।
प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सहायक अध्यापक के पद पर अनुकंपा नियुक्ति से संबंधित प्रदेश सरकार के शासनादेशों को स्वतः संज्ञान लेते हुए रद कर दिया। कोर्ट ने इसे शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के प्रावधानों के उल्लंघन के साथ संवैधानिक अधिकारों के विरुद्ध करार दिया। कहा, शिक्षकों के रूप में नियुक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के अनुसार सार्वजनिक भर्ती की खुली और पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से ही चुना जा सकता है। प्रतिस्पर्धी योग्यता के आधार पर ये चयन सुनिश्चित करता है कि योग्यतम उम्मीदवारों को शिक्षक के रूप में नियुक्त किया जाए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकल पीठ ने यह फैसला वर्ष 2000 और 2013 के शासनादेशों के आधार पर सहायक अध्यापकों के रूप में अनुकंपा नियुक्ति का दावा करने वालों की ओर से दायर रिट याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुनाया। कोर्ट ने माना कि 4 सितंबर 2000 और 15 फरवरी 2013 के शासनादेश उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से संचालित विद्यालयों में शिक्षकों और शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के आश्रितों की अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति से संबंधित हैं जो संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21-ए के विपरीत हैं।
अनुकंपा के आधार पर शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति से संबंधित शासनादेश डाइंग इन हानेंस रूल्स, 1999 के नियम 5 के अधिदेश के भी खिलाफ हैं। हाईकोर्ट ने माना कि भर्ती की संवैधानिक प्रक्रिया शिक्षकों के रूप में नियुक्ति के लिए सभी योग्य उम्मीदवारों में से सबसे अधिक योग्य का चयन करने के लिए सबसे विश्वसनीय तरीका है। साथ ही मामले को तीन महीने के भीतर नए सिरे से निर्णीत करने के लिए विभाग के पास भेज दिया गया।
मृतक आश्रित कोटे में सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति अवैध, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्वतः प्रेरित सुनवाई कर दो शासनादेशों को किया रद
कहा-सहायक अध्यापक के अतिरिक्त अन्य किसी पद पर नियुक्ति दें
सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़ी होती है अध्यापक पद पर नियुक्ति
आश्रित कोटे का उद्देश्य सिर्फ आर्थिक विपदा से परिवार को राहत देना
लोक पद खुली प्रतियोगिता से से भरे जाने चाहिए। लोक पदों पर नियुक्ति में सभी को समान अवसर देने का संवैधानिक उपबंध है। ऐसे पदों को आश्रित कोटे से भरना कानून का दुरुपयोग करना है। यह बैंक डोर इंट्री है और नियुक्ति में समानता के विरुद्ध है।' न्यायमूर्ति अजय भनोट, इलाहाबाद हाई कोर्ट
प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में मृतक आश्रित सेवा नियमावली के अंतर्गत आश्रित को सहायक अध्यापक पद पर नियुक्त किए जाने को अनुच्छेद 14,16, व 21 ए के विरूद्ध होने के कारण असंवैधानिक करार दिया है। साथ ही मृतक आश्रित को सहायक अध्यापक नियुक्त करने की अनुमति देने वाले चार सितंबर 2000 व 15 फरवरी 2013 के शासनादेशों को रद करते हुए सरकार को इन पर अमल न करने का निर्देश दिया है। याचिका में शासनादेशों की वैधता को चुनौती नहीं दी गई थी इसलिए कोर्ट ने स्वतः प्रेरित सुनवाई की। यह फैसला न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकल पीठ ने दिया है।
कोर्ट ने शैलेन्द्र कुमार व पांच अन्य की समान याचिकाओं पर सरकार को तीन महीने में निर्णय लेने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा, सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति सामाजिक प्रतिष्ठा का विषय है, जबकि आश्रित कोटे में नियुक्ति परिवार में अचानक आई आर्थिक विपदा से राहत देना है। याचीगण ने आश्रित कोटे में सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति की मांग की थी। कोर्ट ने इस मांग व शासनादेश को अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 की धारा 3 व मृतक आश्रित सेवा नियमावली 1999 के नियम 5के विरुद्ध करार दिया।
कोर्ट के समक्ष विचारणीय मुद्दा यह था कि क्या याची को शासनादेशों के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति के अंतर्गत शिक्षक के रूप में नियुक्त करने के लिए परमादेश की मांग संविधान सम्मत है? साथ ही क्या शासनादेश संविधान के अनुच्छेद 14, 16 तथा अनुच्छेद 21 ए के तहत शिक्षा के मौलिक अधिकार और बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 द्वारा प्रदत्त अधिकारों के अनुरूप है?
कोर्ट ने कहा, 'वास्तव में योग्यता निर्धारित करने की प्रक्रिया का प्रारंभिक बिंदु योग्यता है। संवैधानिक प्रक्रिया शिक्षकों के रूप में नियुक्ति के लिए सभी योग्य उम्मीदवारों में सबसे अधिक योग्य का चयन करने के लिए सबसे विश्वसनीय तरीका है। यदि अनुच्छेद 21 ए के तहत बच्चों के मौलिक अधिकार को साकार करना है तो दोषपूर्ण नियुक्ति प्रक्रियाओं के कारण शिक्षकों की गुणवत्ता में गिरावट बर्दाश्त नहीं की जा सकती। जो पद डाइंग इन हार्नेस रूल्स, 1999 के नियम 5 के अंतर्गत अनुकंपा नियुक्ति के लिए मान्य नहीं हैं, उन्हें अनुच्छेद 14 और 16 के अंतर्गत सार्वजनिक प्रक्रिया से ही भरा जा सकता है। कोर्ट ने आदेश की प्रति प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा को भेजने का आदेश दिया।
कहा- भर्ती की संवैधानिक प्रक्रिया ही सर्वाधिक योग्य का चयन करने का विश्वनीय तरीका
सर्वश्रेष्ठ का चयन संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 के अनुसार सार्वजनिक भर्ती से ही संभव
" बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अधिकार तभी सुनिश्चित हो सकता है जब सर्वाधिक योग्य उम्मीदवारों की नियुक्ति हो। सिर्फ पात्रता के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति से ये अधिकार कमजोर होता है।" हाईकोर्ट की टिप्पणी
ये थे कोर्ट के समक्ष विचारणीय मुद्दे
🔴 हाईकोर्ट के समक्ष विचारणीय मुद्दा था कि याचियों को शासनादेशों के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति शिक्षक के रूप में नियुक्त करने के लिए परमादेश की मांग संविधान और कानून को लागू करेगी या उसके विपरीत होगी।
🔴 शासनादेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और अनुच्छेद 21 ए के तहत बच्चों को दिए गए शिक्षा के मौलिक अधिकार और बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 प्रदत्त अधिकारों के अनुरूप हैं या नहीं।
🔴 सरकारी आदेश उत्तर प्रदेश सेवाकाल में मृत सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती (पांचवां संशोधन) नियमावली 1999 के नियम पांच के अनुरूप है या नहीं।
न्यूनतम शैक्षणिक अर्हता के आधार पर मांगी थी नियुक्ति
याचिकाएं शैलेंद्र कुमार, शितेश कुमारी, अनुपम, दीप माला कुशवाह और अनिरुद्ध यादव सहित मृत सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों ने दायर की थीं। उन्होंने 04 सितंबर 2000 और 15 फरवरी 2013 के शासनादेशों के तहत बेसिक शिक्षा परिषद में सहायक अध्यापक पद पर अनुकंपा नियुक्ति की मांग की थी। इन शासनादेशों में सिर्फ न्यूनतम शैक्षणिक अर्हता के आधार पर नियुक्ति का प्रावधान था जिसमें मेरिट आधारित चयन की आवश्यकता नहीं थी।
प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सहायक अध्यापक के पद पर अनुकंपा नियुक्ति से संबंधित प्रदेश सरकार के शासनादेशों को स्वतः संज्ञान लेते हुए रद कर दिया। कोर्ट ने इसे शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के प्रावधानों के उल्लंघन के साथ संवैधानिक अधिकारों के विरुद्ध करार दिया। कहा, शिक्षकों के रूप में नियुक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के अनुसार सार्वजनिक भर्ती की खुली और पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से ही चुना जा सकता है। प्रतिस्पर्धी योग्यता के आधार पर ये चयन सुनिश्चित करता है कि योग्यतम उम्मीदवारों को शिक्षक के रूप में नियुक्त किया जाए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकल पीठ ने यह फैसला वर्ष 2000 और 2013 के शासनादेशों के आधार पर सहायक अध्यापकों के रूप में अनुकंपा नियुक्ति का दावा करने वालों की ओर से दायर रिट याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुनाया। कोर्ट ने माना कि 4 सितंबर 2000 और 15 फरवरी 2013 के शासनादेश उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से संचालित विद्यालयों में शिक्षकों और शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के आश्रितों की अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति से संबंधित हैं जो संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21-ए के विपरीत हैं।
अनुकंपा के आधार पर शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति से संबंधित शासनादेश डाइंग इन हानेंस रूल्स, 1999 के नियम 5 के अधिदेश के भी खिलाफ हैं। हाईकोर्ट ने माना कि भर्ती की संवैधानिक प्रक्रिया शिक्षकों के रूप में नियुक्ति के लिए सभी योग्य उम्मीदवारों में से सबसे अधिक योग्य का चयन करने के लिए सबसे विश्वसनीय तरीका है। साथ ही मामले को तीन महीने के भीतर नए सिरे से निर्णीत करने के लिए विभाग के पास भेज दिया गया।