लोकसभा में उठा टीईटी निर्णय पर शिक्षकों की सेवा-सुरक्षा का मामला
टीईटी निर्णय पर शिक्षकों की सेवा-सुरक्षा का मामला मंगलवार को लोकसभा में उठा। सहारनपुर सांसद इमरान मसूद ने शून्य काल के दौरान मामला उठाते हुए, मामले में विधायी हस्तक्षेप की मांग की।
कहा कि मामला उत्तर प्रदेश के लाखों शिक्षकों की सेवा सुरक्षा एवं आजीविका से जुड़ा है। कहा एक सितंबर 2025 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय में कक्षा 1 से 8 तक कार्यरत सभी शिक्षकों के लिए, नियुक्ति की तिथि चाहे जो भी हो, शिक्षक पात्रता परीक्षा टीईटी को अनिवार्य कर दिया गया है। इससे प्रदेश सहित देश भर के करीब 20 लाख शिक्षकों का क्वालीफाइड एवं एक्जेंप्टेड दर्जा संकट में आ गया है।
अनेक शिक्षक, जो शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 तथा एनसीटीई की 2010 की अधिसूचना के अनुसार विधिपूर्वक नियुक्त और विधिसम्मत रूप से मुक्त श्रेणी में दर्ज थे, वे भी आज असमंजस, तनाव और असुरक्षा की स्थिति में पहुँच गये हैं। कहा कि आरटीई अधिनियम एवं टीईटी की बाध्यता देश के विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न तिथियों से प्रभावी हुई है। उत्तर प्रदेश में इसकी प्रभावी तिथि 27 जुलाई 2011 है। हालिया निर्णय ने इन वैधानिक भेदों की उपेक्षा करते हुए हजारों शिक्षकों को अचानक असुरक्षित स्थिति में ला दिया है जिसका प्रतिकूल प्रभाव न केवल उनके मनोबल पर पड़ेगा, बल्कि विद्यालयी शिक्षा की स्थिरता पर भी पड़ेगा। सांसद इमरान मसूद ने केंद्र सरकार से विधायी हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा है कि इस निर्णय को भविष्यलक्षी रूप से लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं, ताकि प्रभावी अधिसूचना तिथि से पूर्व नियुक्त शिक्षकों का वैधानिक दर्जा सुरक्षित रह सके। सरकार पुनर्विचार याचिका दायर करने तथा आवश्यकता पड़ने पर शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में उपयुक्त संशोधन लाने पर भी विचार करें, ताकि देश भर के शिक्षकों के सेवा-अधिकार और सम्मान की रक्षा हो सके।
