उत्तर प्रदेश में 5000 सरकारी स्कूलों का होगा विलय, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी लगाई मुहर: जानिए क्यों हो रहा था विरोध, सरकार ने क्या बताए कारण school merging

Imran Khan
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उत्तर प्रदेश में 5000 सरकारी स्कूलों का होगा विलय, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी लगाई मुहर: जानिए क्यों हो रहा था विरोध, सरकार ने क्या बताए कारण

 इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में स्कूलों के विलय के फैसले को सही ठहराया है। हाई कोर्ट ने इसके विरुद्ध दायर याचिका को खारिज कर दिया है।

उत्तर प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था में हुए एक बड़े बदलाव को इलाहाबाद हाई कोर्ट की मंजूरी मिल गई है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में स्कूलों के विलय के फैसले को सही ठहराया है। हाई कोर्ट ने इसके विरुद्ध दायर याचिका को खारिज कर दिया है। इस फैसले को जहाँ सरकार ने छात्रों के हित में तो वहीं कई शिक्षक संगठनों ने विरोध में बताया है। उन्होंने और भी कई कारण इसके विरोध के पीछे बताए हैं।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्या कहा?

7 जुलाई, 2025 को सीतापुर जिले के 51 छात्रों की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह निर्णय सुनाया। हाई कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी और कहा कि राज्य सरकार की स्कूलों के विलय के पीछे मंशा सही है और इसे नहीं रोका जाएगा।

हाई कोर्ट के इस फैसले से उत्तर प्रदेश में लगभग 5 हजार स्कूल प्रभावित हो रहे हैं। यह स्कूल प्राथमिक और जूनियर हाई स्कूल स्तर की शिक्षा देते हैं। इनके साथ ही इनमें पढ़ने वाले बच्चों का भी भविष्य अब इसी फैसले से तय होगा। योगी सरकार का यह फैसला बीते कुछ समय में चर्चा में रहा है।

योगी सरकार के स्कूलों के विलय के फैसले पर राज्य के शिक्षकों के कई संगठन विरोध भी जता चुके हैं। समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने भी इस मुद्दे को हाल ही के भुनाने का प्रयास किया था। इस फैसले के विरोध और पक्ष में लोगों के अपने अपने तर्क हैं।

पहले जानिए क्या है योगी सरकार का फैसला?

उत्तर प्रदेश में वर्तमान में 1.3 लाख से अधिक प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल हैं। इनमें कई लाख बच्चे पढ़ते हैं। वर्तमान में हर ग्राम सभा में एक प्राथमिक स्कूल है, इसको लेकर स्पष्ट तौर पर नियम भी बने हुए हैं। इन स्कूलों में 6 लाख से अधिक शिक्षक तैनात हैं।

कई जगह ग्राम सभाओं में स्कूल ऐसे हैं जहाँ कुल जमा 20-30 बच्चे भी नहीं पढ़ते। लेकिन इन स्कूलों में बाकी स्कूलों की तरह सरकार को सभी सुविधाएँ देनी होती हैं। इनमें से कई स्कूल ऐसे हैं जहां मात्र 30 बच्चों पर 5-6 शिक्षक हैं।

वहीं दूसरी तरफ कई स्कूल ऐसे हैं जहां बच्चों की संख्या 100 के पार है लेकिन वहाँ शिक्षक की संख्या 3-4 है। ऐसे में इन स्कूलों में शिक्षक छात्र अनुपात बिगड़ा हुआ है।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार इसी समस्या को हल करने के लिए यह फैसला ले रही है। योगी सरकार ने यह निर्णय लिया है कि जिन स्कूलों में 50 से कम बच्चे पढ़ते हैं, उन्हें पास के दूसरे विद्यालय में विलय कर दिया जाएगा।

इन बच्चों को पास के ही दूसरे किसी प्राथमिक या जूनियर हाई स्कूल में स्थानांतरित किया जाएगा। योगी सरकार ने स्पष्ट किया है कि बच्चों को स्कूल जाने में कोई समस्या ना हो, इसके लिए भी दिशानिर्देश दिए गए हैं।

योगी सरकार ने कहा है कि जिस भी स्कूल में विलय होना है, वह दूसरे स्कूल से … किलोमीटर दूर नहीं होना चाहिए। सरकार ने यह भी ध्यान रखने को कहा है कि यह विलय पड़ोस के गांव तक किया जाए।

इसके अलावा यह भी कहा गया है कि बच्चों की सुविधा के लिए यह भी सुनिश्चित किया जाए कि दूसरे स्कूल के रास्ते में कोई प्राकृतिक बाधा कैसे नदी, पहाड़ या झरना आदि ना हो। यहां तक कि यदि दोनों स्कूल के बीच कोई ट्रेन पटरी भी है, तो उसे भी अवॉइड किया जाए।

क्यों लिया योगी सरकार ने यह फैसला?

योगी सरकार ने इस फैसले के पीछे कई कारण दिए हैं। सरकार ने स्पष्ट किया है कि केवल उन्हीं स्कूलों का विलय किया जा रहा है, जिनमें बच्चों की संख्या बहुत कम है। इन स्कूलों को चलाए रखना तार्किक नहीं है।

सरकार का पक्ष है कि इन स्कूलों में शिक्षक तो कई हैं परंतु बच्चे ही नहीं हैं, ऐसे में शिक्षकों का पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा। इसके अलावा, कम बच्चे होने के बावजूद भी इन स्कूलों को खेल, इंफ्रा और बाकी चीजों से संबंधित बजट उतना ही जाता है, जितना किसी बड़े स्कूल को।

यह भी सही से इस्तेमाल नहीं हो पाता जबकि बड़े स्कूलों में कहीं शिक्षकों की कमी है तो कहीं इंफ्रा नहीं है। यह समस्या यदि स्कूल आपस में विलय हो जाएं तो हल हो सकती है। इससे उन स्कूलों में शिक्षक पहुँच जाएंगे, जहाँ बच्चों की संख्या अधिक है और सरकार को भी बजट आवंटित करने में आसानी होगी।

फैसले का विरोध क्यों?

इस फैसले का विरोध मुख्य तौर पर सरकारी शिक्षक कर रहे हैं। उनके इस विरोध में कई तर्क हैं। ऑपइंडिया ने इस मामले में शिक्षकों से बात भी की है। उनके विरोध का फोकस भर्ती कम होने, प्रमोशन घटने और कुछ हद तक बच्चों की समस्या से जुड़ा है।

नाम ना बताने की शर्त पर एक शिक्षक ने हमें बताया कि हर स्कूल का अपना बजट होता है, वहाँ का एक प्रधानाचार्य होता है। यदि दो स्कूल आपस में विलय हो जाएंगे तो फिर प्रधानाचार्य तो एक ही रहेगा, ऐसे में जो शिक्षक आगे प्रमोशन का सोच रहे हैं, उन्हें अपने हित खतरे में लगते हैं।

इसके अलावा शिक्षकों का कहना है कि यह फैसला उनका भविष्य भी अनिश्चितता की तरफ ले जाएगा। उनके अनुसार, वर्तमान में हर स्कूल पर यह फिक्स है कि कितने शिक्षक होंगे, लेकिन नई व्यवस्था में खत्म होने वाले स्कूलों से शिक्षक कहां जाएंगे, इस पर अनिश्चितता है।

शिक्षकों का कहना है कि समस्या यहीं तक नहीं है। उनके अनुसार, अभी भले ही उन्हें दूसरे स्कूलों में अटैच किया जा रहा हो लेकिन आने वाले समय में सरकार स्क्रीनिंग कर के उन्हें हटा भी सकती है, ऐसे में उनका भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।

एक और मुद्दा नई भर्ती का है। शिक्षकों का दावा है कि स्कूलों की संख्या अगर कम की जाएगी तो इसका सीधा असर नई भर्ती की संख्या पर भी होगा। उनका कहना है कि इससे प्रदेश में नई शिक्षक भर्ती रुक जाएगी और रोजगार सृजन नहीं होगा। इसके अलावा बच्चों को दूर जाना पडेगा, यह भी एक कारण दिया जा रहा है।

हाई कोर्ट ने इन सब तर्कों ने नकार दिया है और अब विलय को हरी झंडी दिखा दी है।

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