'अध्यापकों की नियुक्ति न होने से मूल अधिकारों का हो रहा हनन', हाई कोर्ट ने किया अपर सचिव से जवाब-तलब
विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि भारतीय संविधान के अंतर्गत प्राथमिक शिक्षा बच्चों का मूल अधिकार है और सरकार का दायित्व है कि वह छह से 14 साल के बच्चों को अनिवार्य रूप से शिक्षा प्रदान करें।
इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने अपर सचिव (बेसिक शिक्षा) से व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर बताने का निर्देश दिया है कि बच्चों को शिक्षा के मूल अधिकारों का हनन करने वाले राज्य सरकार के अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई क्यों न की जाए? मामले में अगली सुनवाई 11 मार्च को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने कृषि औद्योगिक विद्यालय बांदा की प्रबंध समिति की तरफ से दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है।
याची कमेटी का कहना है कि किसी समय स्वीकृत प्रधानाध्यापक व चार सहायक अध्यापक कार्यरत थे। वर्तमान में न तो प्रधानाध्यापक हैं और न ही कोई सहायक अध्यापक। भर्ती परिणाम 15 नवंबर 2022 को घोषित किया गया था। हाई कोर्ट से परिणाम पर रोक थी, किंतु वह याचिका भी 15 फरवरी 2024 को खारिज हो गई है।
स्कूलों में खाली पदों पर नियुक्ति नहीं होने पर हाईकोर्ट ने सवाल किया है। जागरण
एक साल बीतने के बाद भी खाली पदों पर नियुक्ति नहीं की जा सकी है। विद्यालय मान्यताप्राप्त व राज्य वित्त पोषित है और उसमें कोई सरकारी अध्यापक नहीं है। कोर्ट ने कहा, संविधान ने बेसिक शिक्षा को अनिवार्य मूल अधिकार घोषित किया है। राज्य पर अनुच्छेद 21ए के अनुपालन की जवाबदेही है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी कई फैसलों में सरकार को उसका वैधानिक दायित्व पूरा करने का निर्देश दिया है। बिना अध्यापक बच्चों की शिक्षा के अधिकार की पूर्ति नहीं की जा सकती। कोर्ट ने शिक्षा ही नहीं गुणकारी शिक्षा का आदेश दिया है। कोर्ट ने महानिदेशक स्कूली शिक्षा से हलफनामा मांगा।
अपर निदेशक ने हलफनामा देकर सरकार को लिखे पत्र की जानकारी दी किंतु यह नहीं बताया कि स्कूल में अध्यापको की नियुक्ति पर क्या निर्णय लिया गया? इतना भर कहा कि भर्ती चल रही है। प्रक्रियात्मक देरी लग रही है। कुछ समय लगेगा। इस पर याची अधिवक्ता ने कहा कि सारी बाधाएं हटने के एक साल बाद भी खाली पदों पर नियुक्ति नहीं की जा सकी है। कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया है।