प्राथमिक स्कूलों के ड्रॉप बॉक्स में पड़े 10 हजार बच्चों की तलाश: अधिकारी शिक्षकों पर बच्चों को खोजने का बना रहे दबाव, यू डायस पर ब्योरा दर्ज नहीं Dropbox students details

Imran Khan
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प्राथमिक स्कूलों के ड्रॉप बॉक्स में पड़े 10 हजार बच्चों की तलाश: अधिकारी शिक्षकों पर बच्चों को खोजने का बना रहे दबाव, यू डायस पर ब्योरा दर्ज नहीं

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उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति को लेकर एक बड़ी समस्या सामने आई है। विभागीय जांच में पाया गया है कि विभिन्न स्कूलों के ड्रॉप बॉक्स में लगभग 10,569 बच्चे लापता हैं और इनका कोई ब्यौरा यू-डायस पोर्टल पर दर्ज नहीं है। प्रशासनिक शिक्षकों पर इन बच्चों की तलाश का दबाव लगातार बढ़ रहा है, लेकिन अब तक इनका पता नहीं चल सका है।

#### लापता बच्चों के मुख्य कारण

विभागीय रिपोर्ट के अनुसार, लापता बच्चों की संख्या बढ़ने के कई कारण हैं:

- पारिवारिक स्थिति के कारण अनेक बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं।

- कुछ बच्चे दूसरे स्कूलों में चले जाते हैं, लेकिन उनका ट्रांसफर नहीं रजिस्टर किया जाता।

- निजी स्कूलों में प्रवेश के बाद भी बच्चों का नाम सरकारी अभिलेखों से नहीं हटता।

- सरकारी निर्देशों के बावजूद स्कूलों द्वारा बच्चों के नाम अपडेट या हटाने का कार्य समय से नहीं किया जाता।


#### क्षेत्रवार लापता बच्चों का आंकड़ा

चिनहट क्षेत्र में सबसे अधिक 1691 बच्चे लापता हैं। इसके बाद मलिहाबाद, काकोरी, बीकेटी, सरोजिनी नगर, गोसाइगंज, मोहानलालगंज, नगर-एक, नगर-दो, नगर-तीन, नगर-चार में भी सैकड़ों बच्चे लापता हैं। सबसे अधिक चिनता चिनहट क्षेत्र को लेकर जताई गई है।


#### शिक्षक नेताओं की प्रतिक्रिया

शिक्षक नेताओं ने विभाग की जिम्मेदारी तय किए जाने की मांग की है। उनका कहना है कि ड्रॉप बॉक्स वाले बच्चों की जानकारी देने के बावजूद विभाग कार्रवाई नहीं करता। शिक्षक संघ के प्रतिनिधि दिनेश कुमार सिंह और राम प्रवेश ने बताया कि बच्चों को टीसी दी जा रही है, किंतु उनकी उपस्थिति अपडेट नहीं हो रही है।


#### आगे की कार्रवाई

बेसिक शिक्षा विभाग ने सभी स्कूलों को निर्देश दिया है कि वे ड्रॉप बॉक्स में पड़े बच्चों का रिकॉर्ड जल्द से जल्द अपडेट करें और बच्चों की वास्तविक उपस्थिति सुनिश्चित करें। विभाग ने आंकड़ों की जांच और सत्यापन प्रक्रिया तेज करने के संकेत दिए हैं, ताकि लापता बच्चों की स्थिति स्पष्ट हो सके।


यह समस्या न केवल शिक्षा विभाग की पारदर्शिता पर सवाल खड़ी करती है, बल्कि बच्चों के अधिकार एवं उनके भविष्य को लेकर भी गंभीर चिंता उत्पन्न करती है। विभाग की सक्रियता और पारदर्शिता से ही इस चुनौती का समाधान संभव है। [1]



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